आस्था एवं पर्यटन का अनूठा संगम सकलनारायण मेला एवं श्रीकृष्ण गुफा गोवर्धन पहाड़
रवि कुमार रापर्ती
भोपालपटनम
सकलनारायण मेला का आयोजन 27.03.2025से विकासखंड भोपालपटनम से 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित पोषड़पल्ली गांव से होते हुए 4 किलोमीटर दक्षिण दिशा की ओर गोवर्धन पर्वत पर सकलनारायण गुफा स्थित है। यह सकलनारायण गुफा भोपालपटनम क्षेत्र का प्रसिद्ध गुफा माना जाता है। वीरान गुफा के भीतर एकांत में भगवान श्री कृष्ण की प्राचीन मूर्ति विराजमान है। यहां चिंतावगु नदी के किनारे उत्तर दिशा की ओर भगवान श्री कृष्ण जी का सकलनारायण मंदिर स्थित हैं। यह मंदिर सन 1928 को स्थापित की गई है। पूर्वजों के अनुसार इस गोवर्धन पर्वत और वीरान गुफा की खोज लगभग 1900 ईस्वी में राजाओं द्वारा की गई । यहां प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण पक्ष की अमावस्या के तीन दिन पूर्व मेला प्रारंभ होता है और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नवरात्रारंभ गुड़ी पड़वा के दिन समापन होता है। कहा जाता हैं कि यह मेला हिंदी वर्ष का अंतिम मेला (पर्व ) तथा हिंदी वर्ष की आगमन मेला कहा जाता हैं।
प्रति वर्ष हजारों संख्या में श्रद्धालु आकर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना कर बीती हुई वर्ष से विदाई लेकर नए वर्ष की आगमन पर भगवान श्री कृष्ण जी से सुख शांति समृद्धि और सौभाग्य की शुभकामनाएं प्राप्त होने की विनती करते हैं। विशाल भू- भाग मे फैले भोपालपटनम अंचल को यदि देवी देवताओं की धरती कहे तो अतिरमणीय होगा। गोवर्धन पर्वत के दर्शन के लिए दर्शनार्थी दूर-दूर से आकर चिंतावगु नदी में स्नान कर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ना प्रारंभ करते हैं। इस पर्वत की ऊंचाई लगभग 1000 से 1100 मीटर है। चारों ओर हरे भरे पेड़ पौधों एवं फूलों से घिरा हुआ सकरा पगडंडी रास्ता होने के कारण 3-4 किलोमीटर दूर तय करनी पड़ती हैं। रास्ता तय करते हुए चारों ओर हरे भरे पौधों एवम् रंग बिरंगे फूलों से लदे मनोरम छटा मन को लुभाती हैं। गुफा के प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्सा मे मधु मक्खियां के कई छत्ते है। यदि कोई व्यक्ति अपने मन में गलत धारणा या विचार रखता है तो प्रवेश द्वार के पहुंचने के पूर्व ही मधु मक्खियां कुछ संख्या में आकर व्यक्ति पर आक्रमण कर देती हैं। यह चमत्कार वास्तव में अद्भुत है। विचित्र बात यह है कि गुफा का द्वार पहले की अपेक्षा अभी थोड़ा घट गई हैं। हजारों लोगों की भीड़ रहने के कारण वीरान गुफा के भीतर विराजमान भगवान श्री कृष्ण जी एवम् विराजित अन्य भगवान की मूर्तियां मौजूद हैं । सभी कुमकुम हल्दी अक्षत से सनी एवम् रंग -बिरंगे फूलों एवम् फूलों की मालाओं से ढकी विभिन्न आकृतियों वाली आकर्षक मूर्तियां स्थापित है।गोवर्धन पर्वत में विराजमान श्री कृष्ण जी की अपनी आस्था ही अमिट है। जो श्रद्धालू सच्चे मन से जो भी मन्नत मांगते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। मान्यता है, कि उनके द्वार तक पहुंच कर आज तक कोई व्यक्ति निराश नहीं लौटा है। संतान की प्राप्ति के लिए निराश जिस स्त्री ने भी घुटने टेक कर अपना आंचल फैलाया हैं, उनका आंचल में एक फूल भी गिरे तो संतान की प्राप्ति अवश्य होती हैं। इस सत्यता को आडंबर ना समझे। यह कटु सत्य है। इसे एक प्रकार से कहा जाए तो यह गोवर्धन पर्वत एक अद्भुत चमत्कारिक पर्वत है। इसमें और भी कई ऐसे अद्भुत चमत्कार साक्षत परिलक्षित होती है। इस गुफा के प्रवेश द्वार पश्चात बाहर निकलने के लिए अंतिम द्वार एकदम अनोखी और सोचनीय है। क्योंकि निकलने के पूर्व वह रास्ते को देखकर असमंजस में पड़ जायेगा। क्योंकि निकलने का रास्ता काफी टेढ़ी–मेढ़ी एवम् सकरी है। जिसमें से एकदम पतले से पतला व्यक्ति भी नहीं निकल सकता, किंतु आपको विश्वास हो या न हो उस रास्ते से कितना मोटा व्यक्ति भी क्यों ना हो बाहर निकल जाता हैं। यदि व्यक्ति में गलत विचार,धारणाएं मन में उभरी हो तो वह उस रास्ते के मध्य में ही जाकर फंस जायेगा । यह बात भी सात्विक रूप से सत्य है। यहां गुफा के अंदर 5 मीटर से लेकर 15 मीटर तक की 4 सुरंग में मूर्तिया स्थापित है।गुफा के अंदर अद्भुत चमत्कार पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं। इस पानी की वजह से वहां दल दल (खाई) बन गई हैं। इस दल-दल में कोई व्यक्ति धंस जाए तो वहां से निकलना मुश्किल होता है। इस दल–दल के आगे एक छोटी छिद्र में नागराज जी विद्यमान रहते हैं। किस्मत वालों को ही यह दर्शन मिल पाता है। यहां पत्थर से जो पानी टपकता है, वह बर्फ जैसा ठंडा रहता है। इस प्रकार यहां पर ऐसे अद्भुत चमत्कार दृश्य दृष्टिगत होती रहती है। यहां पर कलिगमदगु (शीतल जल) यहां का जल बहुत ठंडी एवम् मीठा होता है इस पानी को गंगा जल के रूप में घर लेकर आते हैं और घर को शुद्धि का काम आता है। पूर्व की ओर ग्वाले और पश्चिम की ओर कालिंग माडगू कहते है यहां आदमी अगर फंस जाए तो निकलना मुश्किल होता है,इसलिए यहां सतर्कता से जाना पड़ता है, गुफा के अंदर घनघोर अंधेरा रहने के कारण चार्ट साथ में ले जाना अति आवश्यक है ।वहां का शीतल जल ईश्वर का प्रदान है। यहां पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं, और पहाड़ के ऊपर कई प्रकार की आयुर्वेदिक पेड़ पौधें है श्रद्धालु इन्हें तोड़कर घर लाते हैं। छोटे बच्चों को एवम् बड़ों के लिए भी दवाई का काम आता है। गुफा के अंदर कई पक्षियां छोटे बड़े चमगादड़ भी ऊपर से मंडराते रहते हैं ।उनका मल घिरा रहता है उसे भी धूप के लिए लेकर आते है,उसे पेट दर्द ,नजर लगने से इसे धूप बनाकर उपयोग किया जाता है तो ठीक हो जाते हैं। ऊपर में कई प्रकार के पेड़ पौधें है जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्ची कुछ फल पाए जाते हैं इसे घर लेकर आना वर्जित है वही पर खाकर आते है। अभी ये सब आयुर्वेद दवाई खत्म होते जा रहे हैं,जंगल और पहाड़ में आग लगने के कारण नष्ट होते जा रहे हैं। गोवर्धन पर्वत से भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शन कर वापस आते समय 2 किलोमीटर पर रास्ते में एक छोटा सा झरना है। यह झरना , सौंदर्य का प्रतीक है, जिसे बोग्तुम जलप्रपात के रूप में जाना जाता हैं। जिसमे हमेशा पानी भरा रहता है । यहां का पानी बहुत ठंडा एवम मीठा होता है थोड़ी सी पानी से ही मन की तृप्ति हो जाती हैं । इस पानी की तुलना में फ्रीज का पानी भी व्यर्थ है। इसी स्थान पर काका परिवार की ओर से भोजन (स्वल्प आहार)की व्यवस्था की जाती हैं। स्वर्गीय ब्रिजेश काका के द्वारा कई वर्षों से भक्तों को खिचड़ी आचार के साथ भोजन की व्यवस्था की जाती थी। वर्तमान में उनका परिवार यह कार्य कर रहा है। कहा जाता है, की उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जी से कुछ मन्नते की वह पूर्ण होने के कारण यहां प्रतिवर्ष आए भक्त गणों की भूख,प्यास बुझा कर तृप्ति प्रदान करते है। एवम् लोगों से दुआएं प्राप्त करते हैं। प्यासे को पानी भूखे को भोजन की तृप्ति यही हो जाती हैं, इससे बड़ी आत्म संतुष्टि और क्या हो सकती हैं। गोवर्धन पर्वत से उतर कर वापस चिंतावागु नदी के तट पर स्थित सकलनारायण मंदिर में सभी भक्तगण उपस्थित होकर सभी भगवानों की पूजा अर्चना कर मेले का आनंद अनुभूति प्राप्त करते हैं। इस त्यौहार को बड़े हर्ष के और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह यहां का सुप्रसिद्ध मेला है। मेले के समय मंदिर के आस–पास काफी भीड़ रहती है। एक चौड़े से मैदान में तरह–तरह के दुकानों की कतार लगी रहती है। यहां लोग मोटर साइकिल, स्कूटर , ट्रेक्टर , टेक्सी, बैलगाड़ी आदि कई गाड़ियों से मेला का आनंद लेने हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मेला अधिकांशतः रात्रि में लगता है। भीड़ के कारण चलना कठिन होता है। यहां रात में देवी देवताओं के नृत्य के कारण चारों ओर धूल ही धूल नजर आने लगती हैं रात लोकल नृत्य में श्री लक्ष्मी देवी नृत्य, सिनेमा, बुर्रा कथा नाटक और मनोरंजन कार्यक्रम प्रस्तुत की जाती हैं। मेले में लगे दुकानों के लिए बिजली व्यवस्था बिजली विभाग द्वारा की जाती थी।किन्तु इस वर्ष किसी भी प्रकार की व्यवस्था बिजली विभाग द्वारा नहीं करने से दर्शनार्थियों काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।पानी की व्यवस्था के लिए हैंड पंप, टैंकर की व्यवस्था समिति द्वारा की जाती हैं एवम् प्रकृति की देन दक्षिण की ओर चिंतावागू नदी स्थित है। जो कि पश्चिम की ओर कल–कल बहती रहती हैं। जिससे दर्शनार्थी अपनी प्यास बुझाकर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। यहां आए लोगों की सुविधा के लिए “स्वास्थ्य शिविर” स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगाया जाता हैं। रात भर लोग आपस में मिलकर हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं एवम् उपहार भेंट करते है।मेला का आनंद लेने के पश्चात दूसरे दिन सकल नारायण भगवान जी की रथ यात्रा प्रारंभ होती हैं। 10 बजे के समापन होने के बाद सभी लोग अपने अपने घर जाकर “गुड़ी पड़वा” का त्यौहार बड़ी धूम धाम एवम् हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है।और कई लोग हिंदू नववर्ष आरंभ एवम् चैत्र नवरात्रि प्रारंभ में माई जी की आराधना करते है। यह मेला इस वर्ष दिनांक 27.03.2025 गुरुवार ,को मंडपाच्छादन, 28.03.2025 को गोवर्धन पर्वत पूजा अर्चना एवं ध्वजारोहण, 29.03.2025 को भगवान श्रीकृष्ण पूजा अर्चना मंदिर परिसर में, 29.03.2025 को दोपहर 2 बजे माता राधा एवम् कृष्ण जी की विवाह समारोह एवम् क्षेत्रीय लोकल नृत्य एवम् डांसिंग प्रोग्राम (वन विभाग की ओर से), 30.03.2025 को प्रात:7 बजे भगवान की रथयात्रा तथा गुड़ी पड़वा (नवरात्र) प्रारंभ हो रही है। पूर्वजों के अनुसार यहां के पुजारी पूजा अर्चना के बाद मल्लुर मंगापेटा नरसिंह भगवान के पहाड़ में नरसिंह भगवान की पूजा के लिए यहां की सुरंग से जाते थे।अभी भी यह सुरंग एक छोटा सा आकर में नजर आता है। स्थानीय लोगों के अनुसार गुफा से रात में बंसी की धुन सुनाई देती रहती है। इस मंदिर का प्रधान पुजारी जो दिन–रात मंदिर में अपनी सेवा देते हैं। यह मेला 5 दिनों का होता है। इस मेले का संचालन मेला समिति पोषडपल्ली के द्वार की जाती हैं। भोपालपटनम छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर होने के कारण यहां से जुड़े हुए राज्य महाराष्ट्र आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना के लोग अधिक से अधिक संख्या में शामिल होते हैं।
डोंगरगढ़ पहाड़ में स्थित मां बम्लेश्वरी की मंदिर में बिजली की व्यवस्था, एवम् पक्की सड़क जिस तरह शासन के सहयोग से जिसका विकास व्यवस्था की गई हैं। वैसे ही गोवर्धन पर्वत का सकलनारायण गुफा तथा मंदिर की जाए । छत्तीसगढ़ शासन का ध्यान आकर्षण कराना चाहेंगे भगवान श्री कृष्ण जी का गोवर्धन पर्वत एवम् मंदिर के लिए शासन चाहेगी तो यहां पर पहुंच मार्ग, पुलिया, पेयजल, आदि की व्यवस्था कर दे तो, पर्यटन के आकर्षण का केंद्र बनेगा। पर्यटन की ढेर सारी संभावनाएं इस स्थल में है। यह छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर भोपालपटनम क्षेत्र का दर्शनीय स्थल है,किंतु इसका जिक्र अभी तक पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ दर्शन (पर्यटक) में अंकित नहीं है। क्षेत्रवासियों ने बताया कि इसे छत्तीसगढ़ पर्यटन में जरूर स्थान मिलना चाहिए। इस वर्ष शासन प्रशासन की ओर से इतने भव्य मेले में कोई व्यवस्था नहीं की गई। शासन प्रशासन का कोई अधिकारी मेले में नजर नहीं आया। हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। किंतु शासन प्रशासन की अनदेखी के कारण भक्तों एवं श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि से सभी लोग अव्यवस्थाओं के बीच भी सुरक्षित रहते हैं। मंदिर समिति के द्वारा व्यवस्थाएं की जाती हैं, किन्तु ये नाकाफी होती हैं। चुने हुए जनप्रतिनिधि भी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। कई बार समिति और पत्र पत्रिकाओं के द्वारा शासन को अवगत कराया जा चुका है, किन्तु आज पर्यन्त पहुंच मार्ग तक नहीं बनाया गया है। देखी जाने वाली बात यह है कि सुशासन वाली साय सरकार इस ओर कितना धन देती है। यदि यहां सुविधाएं बढ़ाई जाए तो, यह सबसे सुंदर पर्यटन केन्द्र बन सकता है। जंगलों के भीतर अवस्थित होने के कारण वन विभाग के द्वारा भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।






