शारदीय और चैत्र नवरात्रि में मनोकामना ज्योत जलाने उमड़ते हैं श्रद्धालु भद्रकाली में
रवि कुमार रापर्ती
भोपालपटनम
मां भद्रकाली
इंद्रावती व गोदावरी के संगम पावन तट पर मां भद्रकाली का मंदिर
जिला मुख्यालय बीजापुर से 72 किलोमीटर पश्चिम दिशा में तथा भोपालपटनम के दक्षिण में 20 किलोमीटर , भोपालपटनम- वारंगल हाईवे 163 राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित भद्रकाली ग्राम प्रकृति के गोद में बसा हुआ है ।मां भद्रकाली के सानिध्य में बसा , यह ग्राम प्राकृतिक, पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। बस्तर की जीवनदायनी सरिता इंद्रावती एवं पतित पावनी दक्षिणी गंगा मां गोदावरी के पावन संगम तट पर बसा यह ग्राम नैसर्गिक सौंदर्यता से परिपूर्ण है। दोनों नदियों का संगम तट तीन राज्यों को तीन तटों में विभक्त करती है। उत्तर में छत्तीसगढ़, पश्चिम में महाराष्ट्र एवं दक्षिण में तेलंगाना । इस संगम से कुछ मींलों की दूरी पर तेलंगाना -महाराष्ट्र की सीमा रेखा तय करती, प्राणहिता नदी अनेक प्राणियों के हित में सतत् प्रवाहित होते हुए मां गोदावरी के गोद में आकर मिलती है। अतः इसे दक्षिणी-त्रिवेणी अथवा दण्डकारण्य का प्रयाग कहना अतिसंयोक्ति नहीं होगा।
पौराणिक युग में भगवान श्री रामजी भार्या सीताजी एवं अनुज लक्ष्मणजी के साथ वनवास काल में मां भद्रकाली के सानिध्य में इस संगम तक पर चतुर्मास बिताए थे ।चिंताबागु नदी के तट पर बसा रामपुरम ग्राम एवं तारुड़ ग्राम के सन्निकट सीतानगरम् ,आज भी रामजी के बनवास काल के स्मृतिको परिपुष्ट करता है।
पांडवों ने भी वनवास काल में दंडकारण्य में विचरण किए थे। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित सकल नारायण गुफा, भद्रकाली के उत्तर दिशा में 15 किलोमीटर एवं भोपालपटनम के दक्षिण दिशा में 15 किलोमीटर पहाड़ी पर स्थित है।
भद्रकाली ग्राम में एक पत्थर पर विशाल पद्चिन्ह के रूप में भीम खोज अंकित है। भद्रकाली मंदिर के दक्षिण दिशा में 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। पांडवों के वनवास काल के स्मृति को परिपुष्ट करता, हिडिंबा-भीम विवाह का उत्सव आज भी प्रति 3 वर्ष में भद्रकाली ग्राम में मनाया जाता है। हिडिंबा और भीम के काष्ठ प्रतिमा बनाकर ग्राम्य रीति रिवाज से विवाह संपन्न की जाती है। विवाह उपरांत उन दोनों प्रतिमाओं को भीम खोज के पास स्थापित किया जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान कम महत्वपूर्ण नहीं है। वारंगल के महाराजा प्रताप रुद्रदेव अनुज अन्नमदेव के साथ 1324 ई.को अलाउद्दीन खिलजी से त्रस्त होकर बस्तर की ओर प्रस्थान किये। कहा जाता है कि प्रताप रुद्रदेव के पास पारसमणी होने के कारण मुगलशासक पीछा करने लगे। गोदावरी -इंद्रावती के संगम तट पर महायुद्ध हुआ। प्रताप रुद्रदेव ने पारसमणी को मुगलों के हाथ से बचाने के लिए मां गोदावरी को समर्पण कर दिए। दिव्य प्रकाश पुंज के साथ मां गोदावरी प्रकट होकर अपने कर कमल में लेकर संगम में समा गई। प्रतापरुद्रदेव एवं बहन रैलादेवी वीर गति को प्राप्त हुए। भद्रकाली ग्राम में पड़ाव डाल कर, भद्रकाली की आराधना करके अन्नमदेव अपने सैनिकों के साथ बस्तर रियासत की ओर आगे बढ़े। नागवंशी राजाओं को परास्त कर बस्तर साम्राज्य की स्थापना की।
प्राचीन समय में, मंदिर के पूर्व दिशा में भद्रकाली ग्राम बसा हुआ था। शेर के आतंक एवं अकाल मृत्यु से परेशान होकर मंदिर के उत्तर दिशा में तालाब के दूसरे तट पर ग्राम वासी रहने लगे । वहां पर भी इसी तरह की घटनाओं के कारण उस स्थान को छोड़कर मंदिर के पश्चिम दिशा में पहाड़ी के निकट आकर गांव बस गया। यहां बसने के बाद पूर्वोक्त घटनाएं बंद हो गई।मां भद्रकाली का स्थान एक छोटी-सी पहाड़ी को माना जाता रहा है। उस पहाड़ी पर एक छोटी-सी गुफा में रात्रि में प्रकाश-पुंज दिखाई देता था। एक किसी ग्रामवासी को स्वप्न में बार-बार यह प्रेरणा होती थी कि उस पहाड़ी के गुफा पर मां भद्रकाली का स्थान है। परवर्ती समय में ग्रामवासी उसी स्थान पर मां भद्रकाली की पूजा-अर्चना करने लगे।
कालान्तर में दुर्गा अष्टमी, विजयदशमी, बसंत पंचमी मेला एवं चैत्र नवरात्रि का उत्सव बड़े धूमधाम से आयोजित होने लगा। जो कि वर्तमान पर्यंत बड़े उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है।
शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के अवसर पर अखंड दीप जलाया जाता है जिसमें अनेक भक्तों के द्वारा दीप प्रज्वलित किया जाता है। वर्तमान समय में लगभग 500 से 600 दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। प्रथम दिवस मां गोदावरी संगम से जल लाकर मां भद्रकाली का अभिषेक किया जाता है । प्रतिदिन पूजा-अर्चना, हवन, भंडारा कार्यक्रम संचालित होते हैं। अंतिम दिवस कन्या पूजन, हवन, भंडारा कार्यक्रम संपन्न होता है। ग्रामवासी निकटस्थ ग्रामवासी तथा दूरस्थ क्षेत्र के भक्तवृन्द ,श्रद्धालु इस कार्यक्रम में बड़े श्रद्धापूर्वक भाग लेते हैं।
विजयादशमी प्रतिवर्ष भद्रकाली ग्राम में पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है। भगवान श्री राम की विभिन्न झांकियां वनवास से लेकर राम-रावण युद्ध तक जीवंत अभिनय किया जाता है। भगवान श्री रामजी का बनवास यात्रा ग्राम से प्रारंभ करके 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित रावण की प्रतिमा तक विभिन्न चरित्रों का मंचन की जाती है। अंत में रावण दहन किया जाता है। पश्चात् विजय उत्सव, श्रीरामजी का राज्याभिषेक एवं आरती के साथ कार्यक्रम संपन्न होता है।
वसंत उत्सव अत्यंत उल्लासपूर्वक भद्रकाली मैया की विशेष पूजा-अर्चना के साथ त्रिदिवसीय आयोजन के रूप में संपन्न होता है। निकटवर्ती अनेक ग्राम के श्रद्धालु इस आयोजन में आनंद पूर्वक भाग लेते हैं और अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए परंपरागत ढंग से पूजा- अर्चना करते हैं। प्रथम दिवस भद्रकाली मंदिर के चारों ओर स्थित देवी-देवताओं का निमंत्रण एवं आवाहन किया जाता है ।शीतला माता, नंदपराज, लिंगमराज , काल भैरव, लाल भैरव , गोदावरी , इंद्रावती, एवं अन्य सभी देवी देवताओं का आवाहन किया जाता है। कलश यात्रा के साथ गोदावरी का जल लाया जाता है। भद्रकाली मंदिर में स्थापित किया जाता है। दूसरे दिन हवन, पूजन एवं छत्र यात्रा नगर भ्रमण की जाती है। तीसरे दिवस बोनल ( अन्न प्रसाद ) भक्तों के द्वारा मंदिर प्रांगण में स्वयं अलग-अलग तैयार करते हैं। फिर उसे भोग लगाने हेतु मंदिर में लाया जाता है। इन तीनों दिनों में भंडारा वितरण किया जाता है। हर तीसरे वर्ष अग्निकुंड की जाती है। जिसमें धधकती अंगार में लोग चलते हैं।
माघ पूर्णिमा के अवसर पर गोदावरी संगम , पालमड़गु कुंड में कार्यक्रम आयोजित की जाती है। पालामड़गू कुंड के तट पर लिंगमराज महादेव स्थापित है।
यह स्थान प.पू.श्री स्वामी सदाप्रेमानंद सरस्वती जी महाराज शिवानंद आश्रम गुमरगुंडा , दन्तेवाड़ा के पावन तपस्थली के रूप में परिणत हुआ है। पूज्य बाबाजी कई वर्षों से माघ पूर्णिमा के अवसर पर माघ स्नान के लिए इस कुंड पर आया करते थे। धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से परिपूर्ण इस स्थान का पुर्नजागृति के लिए कटिबद्ध थे ।जन सामान्य दक्षिणी गंगा मां गोदावरी के पाप विनाशनी , मुक्तिदायिनी महत्व को समझें और जीवन को धार्मिकता की ओर उन्मुख करते हुए सफल एवं आनंदमय जीवन बनाएं_ ऐसे स्वामी सदाप्रेमानंद जी महाराजजी का मार्गदर्शन रहा है। आज भी प्रतिवर्ष शिवानंद आश्रम गुमरगुंडा के नेतृत्व में माघ स्नान के लिए अनेक भक्त माघ पूर्णिमा के दिन एकत्रित होते हैं । भद्रकाली ग्राम वासियों के द्वारा बड़े उत्साह और लगन से कार्यक्रम आयोजन की जाती है।
शिवरात्रि के अवसर पर भी लिंगमराज महादेव की बड़ी श्रद्धा से पूजा और आराधना की जाती है।
दंतेश्वरी मंदिर में दंतेवाड़ा फागुन मेला के अवसर पर मां भद्रकाली की छत्र मेला में सम्मिलित होने हेतु ले जाया जाता है। इस अवसर पर मार्ग में अनेक ग्राम एवं नगर मां भद्रकाली की स्वागत की जाती हैं। जाते वक्त भोपालपटनम, मद्देड़, बीजापुर, नैमेड, माटवाड़ा, भैरमगढ़ कोडोली, मासोड़ी ,फरसपाल एवं दंतेवाड़ा में भव्य स्वागत किया गया। वापसी में कारली, गुमरगुंडा, तुमनार, येरमनार आदि अनेक स्थानों से होते हुए इस तरह से यह छात्र यात्रा कार्यक्रम संपन्न होता है।