बीजापुर

मां भद्रकाली – अंगारों पर आस्था, बोनालु संग भक्ति और संस्कृति का संगम

भोपालपटनम अन्तर्गत ग्राम भद्रकाली में स्थित माँ भद्रकाली मंदिर अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता के कारण प्रसिद्ध है। हर साल वसंत पंचमी के अवसर पर यहाँ विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जो छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों तेलंगाना और महाराष्ट्र से हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

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इस वर्ष, भद्रकाली मेला 02 फरवरी 2025 से 04 फरवरी 2025 तक धूमधाम से मनाया गया। श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लिया। इस मेले का प्रमुख आकर्षण अग्निकुंड अनुष्ठान और बोनालू उत्सव रहा, जिसमें भक्तों ने आस्था, श्रद्धा और भक्ति का परिचय दिया।

काकातिया वंश की ऐतिहासिक धरोहर, भद्रकाली मंदिर

माँ भद्रकाली का यह मंदिर भोपालपटनम से 20 किमी दूर स्थित है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ऐतिहासिक रूप से काकातिया वंश के शासकों द्वारा स्थापित माना जाता है। प्राचीन काल में यह मंदिर एक गुफा मंदिर के रूप में पूजनीय था, जो कालांतर में एक भव्य मंदिर के रूप में विकसित हुआ।

विशेष आकर्षण, अग्निकुंड अनुष्ठान – आस्था और शक्ति की परीक्षा

भद्रकाली मेले का सबसे अनोखा और महत्वपूर्ण आयोजन अग्निकुंड अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान में श्रद्धालु जलते हुए लाल कोयलों पर नंगे पैर चलते हैं। इसे माँ की कृपा प्राप्त करने और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने का प्रतीक माना जाता है।

इस परंपरा का पालन करने वाले भक्तों का विश्वास है कि माँ भद्रकाली की शक्ति से वे किसी भी पीड़ा का सामना कर सकते हैं और उनके कष्टों का नाश हो जाता है। यह अनुष्ठान आस्था, साहस और शक्ति का परिचायक है, जिसे सदियों से भक्तगण निभाते आ रहे हैं।

तीन दिवसीय मेले की प्रमुख झलकियाँ

पहला दिन : कलश यात्रा और घटस्थापना

भद्रकाली और आसपास की महिलाओं ने पवित्र त्रिवेणी संगम से जल लेकर कलश यात्रा निकाली, जिससे मेले का शुभारंभ हुआ। इसके बाद, मंदिर में माँ भद्रकाली का अभिषेक कर घटस्थापना और मंडप आच्छादन किया गया। पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की गई।

दूसरा दिन : अग्निकुंड अनुष्ठान और धार्मिक आयोजन

मेले के दूसरे दिन सबसे महत्वपूर्ण अग्निकुंड जो की 3 वर्ष में एक बार मनाने का अनुष्ठान संपन्न हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने नंगे पैर जलते कोयलों पर चलकर माँ की कृपा प्राप्त करने की प्रथा निभाई। इस दिन भक्तों द्वारा विशेष पूजा, हवन और भंडारे का भी आयोजन किया गया।

तीसरा दिन : बोनालू उत्सव – शक्ति और भक्ति का पर्व

मेले के अंतिम दिन बोनालू उत्सव आयोजित किया गया। इस परंपरा में महिलाएँ हल्दी, कुंकुम और दीयों से सजे सात घड़ों को सिर पर रखकर मंदिर की परिक्रमा करती हैं। इन घड़ों में खीर, खिचड़ी और सब्जी रखी जाती है, जिसे बाद में श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है

पर्यटन और धार्मिक महत्व, भद्रकाली मंदिर और त्रिवेणी संगम

भद्रकाली मंदिर केवल आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि पर्यटन, इतिहास और संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। यहाँ आने वाले भक्त आध्यात्मिक शांति और दिव्यता का अनुभव करते हैं।

भक्तों के लिए प्रमुख आकर्षण

  1. गौतम कुंड – जहाँ से माँ भद्रकाली का अभिषेक किया जाता है। यह स्थान इंद्रावती और गोदावरी नदियों के संगम के पास स्थित है, जहां गुमरगुंडा के सदाप्रेमानंद स्वामी जी द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई थी, और इस कुंड को गौतम कुंड का नाम दिया गया।
  2. त्रिवेणी संगम – यहां इंद्रावती और गोदावरी नदियों का संगम स्थल है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। इस संगम का धार्मिक महत्व है, और श्रद्धालु यहाँ स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। त्रिवेणी संगम स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है।
  3. कालिका देवी गुट्टा – यहां गुट्टा मां भद्रकाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, ‘गुट्टा’ शब्द तेलुगु भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ होता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 फीट ऊँची पहाड़ी पर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।

भक्तों के लिए विशेष सेवा, भंडारा और प्रसाद वितरण

भद्रकाली मेले में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क भंडारे की व्यवस्था की गई। ग्रामवासियों द्वारा इस सेवा को भक्ति भाव से किया जाता है, जहाँ सभी भक्त एक साथ बैठकर माँ भद्रकाली का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम

यह मेला केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। माँ भद्रकाली की कृपा प्राप्त करने के लिए हर साल हजारों भक्त इस मेले में शामिल होते हैं।

इस तरह के धार्मिक आयोजन धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर आप आध्यात्मिक ऊर्जा, भक्ति और दिव्यता का अनुभव करना चाहते हैं, तो माँ भद्रकाली मंदिर की यात्रा अवश्य करें!

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